कौन कहता है , शहरों में बहार नहीं आती
आती तो है, उस पर किसी की नज़र नहीं जाती
गाड़ियों में बैठ कर भागती है जिन्दगी
चाह कर भी खुद को रोक नहीं पाती ।
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ये तो कम होता है कि आईने में
बस अपना अक्स नज़र आता है
जब झाँकते हैं
एक नया शक्स नज़र आता है ।
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अब तो वो भी लगते हैं
पराए से
हम कभी जिनके
हम-साए थे I
पराए से
हम कभी जिनके
हम-साए थे I
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वो शक्स आज क्यों मुझे
बुझा -बुझा सा लगा
जो झांक रहा था मेरी ओर
आईने के उस तरफ से I
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आईने से झांक कर
मेरा अक्स बोला मुझसे
कितना वक्त गुजर गया
मुझको मिले तुझ से I
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मैंने तो चाहा था तुमको
खुदा से ज़्यादा
शायद मांग लिया मैंने
अपनी वफ़ा से ज़्यादा I
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मेरे दिल की कुछ बातें
दिल ही में दफ़न हो जाएंगी
तुम बातें चार सुना देना
वो मेरा कफ़न हो जाएंगी I
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