Friday 9 December 2022

परदेसी नदी

 इस अनजान शहर में 

ये नदी ही है साथ मेरे 

दूर देश से आती है 

दूर देश को जाती है 

इस शहर से गुजरती हुई

मुझको कुछ सुकून दे जाती है 


परदेस में परदेसी नदी 

मुझको अपनी सी लगती है 

शायद क्योंकि मेरी तरह ही 

ये कहीं नहीं ठहरती है


इसकी लहरों जैसे ही 

रहता मेरा मन भी बेकल 

सबको लगती ये अपनों सी

इसे मिलता नहीं अपनापन 


यात्रा हम दोनों की है  एक-सी 

लगता है जैसे - 

बेफिक्र से बहते हम दोनों समय के संग 


बस अंतर इतना ही है 

भूत, वर्तमान और भविष्य में 

यह एक साथ है रह पाती 

और मैं इस त्रिकोण का 

 गणित  नहीं समझ  पाती l



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