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Friday, 20 September 2019

थप्पड़ का महत्व


जब भी बचपन में कोई गलती करते थे तो सबसे पहले थप्पड़ ही पड़ता था और हमारी पीढ़ी तो बिना बात के भी बहुत पिटी  है। कभी टीचर से, कभी पापा-मम्मी से। मुझे मम्मी के थप्पड़ उतने याद नहीं जितनी उनके पड़ने की धमकियां। 
मम्मी का डायलॉग- " एक थप्पड़ पड़ेगा तो  सब ठीक हो जाएगा " , यही है इस निबंध का मूल।  

चेतावनी : इस निबंध को केवल आनंद प्राप्त करने के लिए पढ़ें
इसमें बताये गए उपायों का इस्तेमाल आज -कल वर्जित है। 
ऐसा करने पर परिणामों के जिम्मेवार आप खुद होंगे। 

थप्पड़ का महत्व


किसी महान आत्मा ने कहा है-


"थप्पड़ खाये तो ज्ञानी बने
पिज़्ज़ा खाये तो मूर्ख,
डांट पिये तो ज़िंदगानी बने
कैम्पा पिये तो धूर्त ।"


आज का युग मार -पिटाई का युग है । इस काल में थप्पड़,लातों , मुक्कों और गालियों का बहुत महत्व है। इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है- थप्पड़ का। रण - क्षेत्र हो या गृह-युद्ध क्षेत्र, थप्पड़ सब ओर ही समान रूप से प्रचलित है। जब पति या पत्नी एक-दूसरे पर हाथ उठाते हैं तो जबड़े पर पहला प्रहार होता है, थप्पड़ का। जब कोई लड़का किसी लड़की को तंग करता है तो उसका भी जवाब होता है- थप्पड़। फिल्मों में भी इसका भरपूर प्रयोग होता है। इसकी लोकप्रियता का अनुमान, ऐसे सीन पर थिएटर में बजने वाली तालियों की गूंज से, लगाया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि थप्पड़ एक मजबूत स्थिति में खड़ा हो कर अन्य अस्त्रों-शस्त्रों को ललकार रहा है।
थप्पड़ के कई रूप प्रचलित हैं। इन में सबसे ऊंचा स्थान है चाँटे का। चांटे के बारे में दार्शनिकों के अलग-अलग मत हैं । चाँटा कमेटी के श्री चाँटू लाल का मत है- 
" जब थप्पड़ गाल पर पड़ता है तो उसे चांटे का नाम दिया जाता है.. " 
दूसरी ओर, श्री थपेड़ूमल के अनुसार -
" जब कोई स्त्री पुरुष को थप्पड़ मारे, तभी उसे चांटे का नाम देना चाहिए । "


चाँटा शब्द सुनने में चटपटा - सा लगता है और जब यह गाल पर पड़ता है तो गालों की  रंगत देखते ही बनती है। चाहे कुछ भी कहिए थप्पड़ या/और चाँटा है बहुत काम की चीज़। किसी को भी पीछे से मार कर भाग जाइए, पिटने वाला ढूँढता रह जाएगा पर पीटने वाला नहीं मिलेगा।
यदि आज सेनाएँ और आतंकवादी बमों और स्टेंगनों को छोड़ कर थप्पड़ को अपना लें तो प्रदूषण की समस्या काफी हद तक हल हो जायेगी। थप्पड़ किसी की ज़िंदगी बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। किसी बच्चे को गलती पर थप्पड़ मारो तो वह सुधर जाएगा और यदि बिना बात के मारो तो वह बिगड़ जाएगा। कान खींच कर थप्पड़ मारने से बुद्धि चैतन्य होती है, यह एक वैज्ञानिक सत्य है।
आज इस संसार में फिर एक क्रांति की आवश्यकता है जो ‘थप्पड़वाद’ के नाम से जानी जाएगी। विश्व की कई समस्याएँ थप्पड़ मारते ही हल हो जाएँगी। आज जरूरत है एक ही नारे की-
'
थप्पड़वाद – जिंदाबाद'
'
थप्पड़ खाओ और खिलाओ,
मारते-खाते ज़िंदादिल बन जाओ'
विश्व में क्रांति तभी आएगी जब थप्पड़ खाने- खिलाने के लिए पार्टियां होंगीपाँच सितारा होटलों में।
संक्षेप में इतना कहा जा सकता है कि विकट से विकट समस्या का हल है- थप्पड़।


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