Wednesday 26 May 2021

वो शांत सी बहने वाली नदी

 वो शांत सी बहने वाली नदी 

जब पत्थरों से टकरा जाती है

गिरती है आसमानों से तो

धरती को भेद जाती है 


झरना बन कर गिरती नदी 

अपना नया रूप दिखाती है

बंधन में जो न ये बंधना चाहे 

बांधों  को तोड़ जाती है 


जब लेती है बाढ़  का रूप 

सब ध्वस्त कर जाती है

अमृत बन कर प्यास बुझाने वाली

सारी बस्ती को लील जाती है 


वो शांत सी बहने वाली नदी 


जहां रुक जाए  धारा - प्रवाह 

घूम-घूम गोल भंवर बनाती है

कुछ हिस्से यूँ ठहरते हैं 

खुद को हरा रंग दे जाती है 


वो शांत सी बहने वाली नदी 

जब पत्थरों से टकरा जाती है

थोड़ी-सी रुक जाती है

थोड़ी आगे बढ़ जाती है 

 

वो शांत सी बहने वाली नदी 


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