बंद बरनियों में,
चेहरा देखकर
चमकती कड़छियों में,
बिंदी को बना कर
चकले - सी गोल या
कार के पहियों- सी,
गुन्धे आटे के रंग से सजकर,
तवे- सा काला टीका लगा कर,
लाल-मिर्च के रंग सा -
सिंदूर लगाती हूँ।
अलग अलग डिब्बों में
जिंदगी को जीकर,
काँच के गिलास-सा
मान उठाती हूँ।
कढ़ाइयों से सीख लेती हूँ
आग में तप कर भी न जलना।
गुस्सा जब तेल सा खौले,
अपना ही अभिमान तल लेना।
फिर मुस्कान सजा कर
नए बर्तनों-सी खुद पर,
चल पड़ती हूँ-
बिंदी-सा गोल स्टियरिंग घुमाकर।
इंजन आवाज़ करता है
मन के झंजावात-सी ,
जैसे दाल में छौंक लगा हो।
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Evocative outpouring of a woman. Profound imagery. Loved it. Congratulations.
ReplyDeleteEvocative outpouring of a woman. Profound imagery. Loved it. Congratulations.
ReplyDeleteThank you!
ReplyDeleteCongratulations, Its wonderful.
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