Monday 26 September 2022

अनचाही बेटी

 हाँ माना 

बेटी हूँ अनचाही 

पर हूँ तो तुम्हारी 

तुम्हारे ही गर्भ से जन्म लिया 


हाँ माना 

कर्णधार था कोई विदेशी

रचा जिसने मुझे तलवार सा 

काटने को बांटने को 

उस भारत को 

जो विश्व अपार था 


" कैसे इस संस्कृति को नष्ट कर दूँ? "

उसके सम्मुख यह प्रश्न विचार था 


हाँ उसने ही स्थापित किया था मुझको 

पर मेरी रगों में रक्त तुम्हारा है 


मुझ नवजात को संभाला तुमने 

विदेशी बोली की छोटी, सौतेली 

बहन बना कर पाला तुमने 

सशक्त किया मेरे जीवन को

महादेवी और निराला ने 


हो गयी हूँ अब 75 बरस की 

क्या अब घर से निकालोगे ?

क्या मेरे आभाव में बिना विघ्न के

नव संस्कृति को संभालोगे ? 

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