ये धूल जो उड़ती आती है
मेरे लिए काम ले आती है
मेरी सब चीज़ें
एक परत से ढक जाती हैं I
और मैं
अपनी सब चीज़ों को पोंछ कर
फिर करीने से सजाती हूँ ,
और अपने मन से भी
समय की परत हटाती हूँ I
बच्चों की याद आती है
कानों में कुछ आवाज़
गूँज जाती है I
याद आता है
उनकी किलकारियों से
गूंजता आंगन,
कभी मिट्टी, कभी कीचड़
से सना आंगन I
वो उनका घर में ले आना
बस यूंही कोई अदना-सी चीज़
उनके पसीने की महक से
महकता आंगन I
बहुत समय बीता
अब घर में कीचड़ नहीं आता,
सुन्दर से सुन्दर फूल भी
घर को उतना नहीं सजाता,
सारा दिन बस मैं
चीज़ों को चमकाती हूँ I
फिर रात को जब किसी
बच्चे का फ़ोन आता है
मैं धीमे-से मुस्काती हूँ
और धूल को बुलाती हूँ,
वो भी सगी सखी जैसी
सुबह तक पहुँच जाती है
हर चीज़ पर फिर से
एक परत बनाती है
ये धूल जो उड़ती आती है
मेरे लिए काम ले आती है I
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